श्री विष्णु भगवान के एक हजार नामों की श्लोक है। इस मंत्र करने से मन को बहुत शांति मिलती हैं श्री विष्णुसहस्रनाम पाठ करने व्यक्ति को यश, सुख, ऐश्वर्य, संपन्नता, सफलता, आरोग्य सौभाग्य प्राप्त होता है | और मन शांत रहता हैं | श्लोक और अर्थ दोनों इस ब्लॉग में आपको मिलेगे
यह श्लोक भगवान गणेश की स्तुति में है और सभी विघ्नों को दूर करने के लिए उनका ध्यान किया जाता है। इसका अर्थ है:
श्लोक:
शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥१॥
अर्थ:
जो श्वेत वस्त्र धारण करते हैं, जिनका स्वरूप भगवान विष्णु के समान है, जिनका रंग चंद्रमा के समान उज्ज्वल है, जिनके चार भुजाएं हैं और जिनका मुख सदैव प्रसन्न रहता है, ऐसे भगवान गणेश का ध्यान करें, जो सभी विघ्नों का नाश करते हैं। यह श्लोक प्रायः पूजा के आरंभ में भगवान गणेश का स्मरण कर विघ्नों को दूर करने के लिए पढ़ा जाता है।
यह श्लोक भी भगवान गणेश की स्तुति में है और उनके पार्षदों (गणों) का स्मरण करते हुए सभी विघ्नों के नाश के लिए उन्हें आश्रय लेने की बात करता है।
श्लोक:
यस्य द्विरदवक्त्राद्याः पारिषद्याः परः शतम्।
विघ्नं निघ्नन्ति सततं विष्वक्सेनं तमाश्रये।।
अर्थ:
जिनके पार्षद (गण) जैसे द्विरदवक्त्र (हाथी के मुख वाले) और अन्य, सौ से भी अधिक संख्या में हैं, जो सदा विघ्नों का नाश करते हैं, उन विष्वक्सेन (भगवान गणेश) का मैं आश्रय लेता हूँ।
यह श्लोक भगवान गणेश की महिमा का वर्णन करता है, जो अपने पार्षदों के साथ समस्त विघ्नों को हरने में समर्थ हैं। इसका पाठ संकटों को दूर करने और कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
यह श्लोक महर्षि वेदव्यास को समर्पित है, जो महाभारत और अन्य महान ग्रंथों के रचयिता हैं।
श्लोक:
व्यासं वसिष्ठनप्तारं शक्तेः पौत्रमकल्मषम्।
पराशरात्मजं वन्दे शुकतातं तपोनिधिम्।।
अर्थ:
जो व्यास हैं, वसिष्ठ मुनि के पौत्र, शक्ति के पुत्र और पापरहित हैं। जो पराशर ऋषि के पुत्र तथा शुकदेव के पिता हैं, जो तपस्या के भंडार हैं, ऐसे महर्षि व्यास को मैं वंदन करता हूँ।
यह श्लोक वेदव्यास जी की महानता का वर्णन करता है और उन्हें नमन करने के लिए पढ़ा जाता है। वे भारतीय धर्म, दर्शन और संस्कृति में एक अद्वितीय स्थान रखते हैं, और यह श्लोक उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करता है।
यह श्लोक महर्षि वेदव्यास की स्तुति में है, जो भगवान विष्णु के रूप माने जाते हैं और ज्ञान के भंडार हैं।
श्लोक:
व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे।
नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नमः।।
अर्थ:
व्यास, जो विष्णु के रूप हैं और विष्णु, जो व्यास के रूप में प्रकट हुए हैं, उन्हें नमस्कार है। जो ब्रह्म (ज्ञान और सृजन) के भंडार हैं और वसिष्ठ के वंशज हैं, उन्हें बारंबार प्रणाम।
यह श्लोक वेदव्यास जी को भगवान विष्णु का अवतार मानकर उनकी स्तुति करता है। वेदव्यास को भारतीय धार्मिक और साहित्यिक परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, क्योंकि उन्होंने वेदों का विभाजन, महाभारत की रचना और पुराणों की स्थापना की।
यह श्लोक भगवान विष्णु की स्तुति में है, जो शुद्ध, अविनाशी और परमात्मा हैं।
श्लोक:
अविकाराय शुद्धाय नित्याय परमात्मने।
सदैकरूपरूपाय विष्णवे सर्वजिष्णवे।।
अर्थ:
जो अविकार (परिवर्तन रहित) और शुद्ध हैं, जो सदा नित्य (अनंत) और परमात्मा हैं। जो सदा एक रूप में रहते हैं और जो सर्वजिष्णु (सभी पर विजय पाने वाले) हैं, उन भगवान विष्णु को प्रणाम।
यह श्लोक भगवान विष्णु के दिव्य स्वरूप का वर्णन करता है। उन्हें शुद्ध, अपरिवर्तनीय और अजर-अमर माना गया है। यह श्लोक उनकी अखंड उपस्थिति और सर्वशक्तिमान स्वरूप का गुणगान करता है।